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वेदों ने माना है दुर्गा देवी को “परब्रह्म”! Vedas Consider Devi Durga as God

बहुत कम लोग ये जानते है की वास्तव में वेदव्यास जो की भगवान् नारायण के अंश अवतार है, उन्होंने ही पहले वेदों को चार भागो में लिखा और फिर महाभारत महाकाव्य की रचना करी, तत्पश्चात उन्होंने 18 पुराणों की रचना करी। जब देवऋषि नारद ने महाभाग व्यास जी से सर्वोच्च और महापुराण पूछने को कहा तो, उन्होंने देवी पुराण को “महा पुराण” बताया परन्तु पुरुष प्रधान इस समाज ने देवी पुराण को “उप पुराण” घोषित कर दिया। जबकि, सभी पुराणों में यही एक पुराण है जो स्वयं को “महापुराण” घोषित करता है, और वो इसलिए क्योंकि वेद व्यासजी ने इसे ही “महापुराण” कह कर सम्बोदित किया।

सही तरीके से इस पुराण को पड़ने से और चारो वेदों को तदुपरांत पढ़ने से हमे शिवजी और विष्णुजी की आयु का प्रमाण मिल जाता है। मात्र यही पुराण है जिसमे ब्रह्माजी को युवा प्रदर्शित किया गया है क्योंकि जब देवी पराशक्ति त्रिमूर्ति को अपने निवास स्थान मणि द्वीप पर बुलाती है तब तीनो को कोई न कोई सिद्धि देती है जैसे की माता नारायणा को चौदह भुवनो का अधिपति और सम्पूर्ण भार नयुक्त करती है, शिव के अधीन काल को नयुक्त करती है और ब्रह्मा सबसे युवा थे, उनको रचना की शक्ति प्रदान करती है, यही नहीं वह बताती है की, परब्रह्म भी वह स्वयं है।

अद्भुत रामायण जो की वाल्मीकि रामायण का विकसित स्वरुप है, जिसे “लव-कुश” ने राम के समक्ष सुनाई थी, उसमे, भगवती काली को ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी ब्रह्मंशक्ति माना है, कारण जब सहस्त्रमुख रावण पुरषोतम रामचन्द्रजी को परास्त कर देता है, तब भगवती सीता “जगदम्बा पार्वती” की सहायता से महाकाली रूप धारती है और उसका वध कर देती है। तब रामजी बोलते है “आप शुरुआत या समाप्त होने से परे है, आप रूप रहित है इसलिए आप शक्ति रूप में कभी पार्वती तो कभी सीता के रूप में अवतरित होती है। आप गौरवशाली हैं, आप ही परमात्मा है, आप ही प्रथम पुरूष की जननी हैं, आप सबसे शक्तिशाली हैं, निर्गुण ब्रह्मं है। आप ही समस्त सृष्टि की रचिया और संघारकरता है, आप परम शांत और परम गतिशील हैं और वो भी है जो कुछ नहीं है।”

ऋग वेद में भी (दसवीं पुस्तक, 125 वां मंडल, तीसरा अध्याय और 7 वां श्लोक) देवी ने कहा: “मैं सर्वव्यापी हूँ और यह समस्त ब्रह्माण्ड, और जो कुछ भी अस्तित्व और गैर अस्तित्व में है, वो सब कुछ मैं हूँ । मैंने ही सभी त्रिदेवो सहित, समस्त देवताओं को जन्म दिया और समस्त शक्तियां मेरा ही विस्तार है, यहां तक कि मैने आदि कुमारी होते हुए भी, प्रथम पुरुष और सर्वोच्च पिता को जन्म दिया। मैं एक मेव द्वित्य ब्रह्मं हूँ।”

भगवान कृष्ण ने आदी शक्ति (जो स्त्री रूप में ललिता के रूप और पुरुष रूप में कृष्ण / नारायण रूप में अवतरित होती है) से कहा, “मैं प्रथम बीज हूँ और आप मेरे निर्माता हो और जब समस्त चराचर नष्ट हो जाता है तब केवल आप ही अकेली रह जाती हो।” – ब्रह्माण्ड पुराण अध्याय 12वें श्लोक 36

ये मात्र कुछ ही ऐसे उदहारण है जो स्पष्ट करते है की हिन्दू शास्त्र के अनुसार इस चराचर ब्रह्माण्ड की मालकिन ये आदि पराशक्ति भगवती परमेश्वरि है। ये आश्चर्य की बात नहीं है स्त्री रूप की भक्ति, आस्था का सबसे पुराना स्वरुप है। देवी पूजा पुरे विश्व में पिछले 90000 से हो रही है और ये आधुनिक भारत में दिन दुनि और रात चौगनी रूप से बढ़ रही है, कारण एक है जो सत्य है उसको कुछ देर के लिए दबाया जा सकता है परन्तु उसपर विजय पाना ना मुमकिन है, और इसीलिए नवरात्री बुरी सोच को ख़तम करने का सबसे उत्तम मार्ग है।

Happy Navratri!

Snehil Sharma

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